इलेक्टोरल बॉन्ड (Electoral Bonds): इलेक्टोरल बॉन्ड वित्तीय साधन (financial instrument) होते हैं, एक तरह के प्रॉमिसरी नोट (वादे के आधार पर भुगतान करने का नोट) की तरह। इन्हें कोई भी भारतीय नागरिक या भारत में स्थापित कंपनी स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की निर्दिष्ट शाखाओं से खरीद सकती है। ये बॉन्ड्स एक राजनीतिक दल को दान में दिए जा सकते हैं, जिन्हें 15 दिनों के भीतर भुनाना होता है।
इलेक्टोरल बॉन्ड्स पर विवाद: इनकी आलोचना करने वाले लोग यह तर्क देते हैं कि चूंकि इन बॉन्ड्स को खरीदने वाले का विवरण गुमनाम रहता है, इससे बड़े कॉर्पोरेट घरानों द्वारा राजनीतिक दलों को प्रभावित करने के लिए गुप्त चंदे (donations) का रास्ता खुलता है। बिना किसी पारदर्शिता के, इससे भ्रष्टाचार की गुंजाइश बढ़ती है।
सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court): भारत का सर्वोच्च न्यायालय देश की शीर्ष अदालत है। यह भारत के संविधान की रक्षक के रूप में कार्य करता है और देश के सभी अन्य न्यायालयों पर इसकी वरिष्ठता है। सर्वोच्च न्यायालय अपने फैसलों के माध्यम से कानूनों की व्याख्या करता है और सरकारी आदेशों को चुनौती दे सकता है।
अनुच्छेद 19 (1) (ए) (Article 19 (1) (a)): यह अनुच्छेद भारत के संविधान का एक हिस्सा है जो बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार की गारंटी देता है। इसका अर्थ है कि भारतीय नागरिकों को उन विचारों को व्यक्त करने का अधिकार है जो वे चाहते हैं, जिसमें सरकार की आलोचना भी शामिल है।
भारतीय चुनाव आयोग (Election Commission of India): भारत का चुनाव आयोग लोकतांत्रिक चुनाव करवाने के लिए जिम्मेदार एक संवैधानिक संस्था है। इसका काम यह सुनिश्चित करना है कि भारत में होने वाले चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष हों। चुनाव आयोग मतदाता सूचियों का रखरखाव, मतदान प्रक्रिया की निगरानी और दलों को उनके चुनाव चिन्ह आवंटित करने जैसी महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाता है।
अवमानना याचिका (Contempt Petition): जब कोई व्यक्ति या संस्था जानबूझकर अदालत के आदेश का उल्लंघन करती है, तो अदालत उनके खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू कर सकती है। यह अदालत के अधिकार को बनाए रखने और यह सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है कि उसके आदेशों का सम्मान हो और उनकी अवहेलना न की जाए।
केवाईसी (KYC – Know Your Customer): केवाईसी मानक बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थानों पर लागू होते हैं। यह सुनिश्चित करने के लिए बनाए गए हैं कि वित्तीय संस्थाएं अपने ग्राहकों की पहचान सत्यापित करें। केवाईसी प्रक्रिया में नाम, पता, जन्म तिथि और अन्य व्यक्तिगत जानकारी जैसी चीजें एकत्र करना होता है। ऐसा मनी लॉन्ड्रिंग और अन्य अवैध वित्तीय गतिविधियों को रोकने के लिए किया जाता है।